कोई ग़ैबी इशारा हो रहा है बदन तप कर शरारा हो रहा है मिरे अन्दर दिए जलने लगे हैं वो मुझ पर आश्कारा हो रहा है खड़ा हूँ हिज्र के किस आसमाँ पर कि हर आँसू सितारा हो रहा है दुआ ख़ुर्शीद की माँगी है मैं ने चराग़ों पर गुज़ारा हो रहा है वहीं पर नाव डूबी है हमारी जहाँ दरिया किनारा हो रहा है