इक अज़िय्यत है कार-ए-वहशत है ऐ ख़ुदा क्या यही मोहब्बत है दिल अभी तक भरा नहीं मेरा क्या अभी चार दिन की मोहलत है चारागर मुझ से पूछने आए बच निकलने की कोई सूरत है तुम मुझे छोड़ कर न जाओगे झूट कहने में क्या क़बाहत है मैं तो उस को ख़ुदा समझता हूँ देखने की कहाँ इजाज़त है कोई मुझ से बिछड़ने वाला है आसमाँ की अजीब हालत है