इक अपने सिलसिले में तो अहल-ए-यक़ीं हूँ मैं छे फ़ीट तक हूँ इस के अलावा नहीं हूँ मैं रू-ए-ज़मीं पे चार अरब मेरे अक्स हैं इन में से मैं भी एक हूँ चाहे कहीं हूँ मैं वैसे तो मैं ग्लोब को पढ़ता हूँ रात दिन सच ये है इक फ़्लैट है जिस का मकीं हूँ मैं टकरा के बच गया हूँ बसों से कई दफ़ा अब के जो हादिसा हो तो समझो नहीं हूँ मैं जाने वो कोई जब्र है या इख़्तियार है दफ़्तर में थोड़ी देर जो कुर्सी-नशीं हूँ मैं मेरी रगों के नील से मालूम कीजिए अपनी तरह का एक ही ज़हर-आफ़रीं हूँ मैं माना मिरी नशिस्त भी अक्सर दिलों में है एंजाइना की तरह मगर दिल-नशीं हूँ मैं मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं