शरार-ए-जाँ से गुज़र गर्दिश-ए-लहू में आ अब ऐ निगार-ए-तमन्ना मिरे सुबू में आ मुझे पुकार मिरी बाज़-गश्त की मानिंद मिरे ख़मीर से उठ मेरी गुफ़्तुगू में आ तिरे लिए तो लिबास-ए-ग़ज़ल है ना-काफ़ी क़रार-ए-जाँ तू किसी और रंग-ओ-बू में आ मैं तिश्ना-लब हूँ सर-ए-दश्त-ए-आगही कब से सबील तू है तो सहरा-ए-जुस्तुजू में आ तुझे तो हल्क़ा-ए-दानिश-वराँ से क्या निस्बत तू 'आज़मी' किसी तश्हीर-ए-कू-ब-कू में आ