इक बार मिल के वो मिरे सब ख़्वाब ले गया आँखों से मेरी सारी तब-ओ-ताब ले गया गहरे समुंदरों में जो उतरा था एक बार मोती वो सारे ढूँड के नायाब ले गया पहले बुझाए उस ने मिरे घर के सब चराग़ फिर मेरे आसमान से महताब ले गया आया तो उस के साथ मिरी ज़िंदगी भी थी जाते हुए वो ज़ीस्त के अस्बाब ले गया वो छोड़ कर गया तो मैं गुम-सुम सी रह गई 'सीमा' ये सानेहा मिरे आ'साब ले गया