इक बर्क़ है हुजूम-ए-तक़ाज़ा लिए हुए जाने मैं आ गया हूँ यहाँ क्या लिए हुए महमिल की ओट में लब-ए-लैला शफ़क़-फ़रोश दश्त-ए-जुनूँ में क़ैस है ग़ौग़ा लिए हुए इक तू कि बे-हिजाब न होना तिरी अदा इक मैं कि शौक़-ए-दीद की दुनिया लिए हुए इक तू कि अपने हुस्न की है आप ही दलील इक मैं कि तेरे इश्क़ का दावा लिए हुए इक तू कि तेरी मस्त निगाहों में मय-कदे इक मैं कि लब पे हसरत-ए-सहबा लिए हुए मक़्सूद इम्तिहान है रिंदों के ज़र्फ़ का फिरता हूँ बज़्म बज़्म मैं मीना लिए हुए इतना असर तो शैख़ की सोहबत का है 'अमीं' हाथों में जाम लब पे हूँ तौबा लिए हुए