इक बे-निशान हर्फ़-ए-सदा की तरफ़ न देख वो दूर जा चुका है हवा की तरफ़ न देख आबाद कर ले दीदा-ओ-दिल में सनम-कदे कहता है वो कि एक ख़ुदा की तरफ़ न देख अपनी ही आफ़ियत की तग-ओ-दौ में महव रह इस सर-ज़मीन-आह-ओ-बुका की तरफ़ न देख अपने उफ़ुक़ की तंग फ़ज़ा से ही काम रख मैदान-ए-हश्र दश्त-ए-बला की तरफ़ न देख कर ले न अपने शहर-ए-तिलिस्मात का असीर उस की निगाह-ए-होश-रुबा की तरफ़ न देख रख ख़ाक-ए-दिल पे अपने क़दम एहतियात से मौज-ए-हवा-ए-सम्त-नुमा की तरफ़ न देख