एक बे-रंग से ग़ुबार में हूँ तेरी आवाज़ के हिसार में हूँ बे-ख़िज़ाँ है तसव्वुर-ए-हस्ती मैं अभी आलम-ए-बहार में हूँ मेरा हर फ़े'ल मुझ से पोशीदा जाने मैं किस के इख़्तियार में हूँ अभी तोड़ो न ये तिलिस्म-ए-वफ़ा मैं अभी प्यार के ख़ुमार में हूँ ज़िंदगी तुझ से कुछ नहीं शिकवा अपने क़ातिल के इंतिज़ार में हूँ