जिस को निस्बत हो तुम्हारे नाम से क्यूँ डरे वो गर्दिश-ए-अय्याम से फिर कोई आवाज़ आई कान में फिर खनक उट्ठे फ़ज़ा में जाम से उन निगाहों को न जाने क्या हुआ जिन में रक़्साँ थे नए पैग़ाम से फिर किसी की बज़्म का आया ख़याल फिर धुआँ उट्ठा दिल-ए-नाकाम से कौन समझे हम पे क्या गुज़री है 'नक़्श' दिल लरज़ उठता है ज़िक्र-ए-शाम से