एक बेवा की आस लगती है By Ghazal << बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बत... हर फ़लक-बोस इमारत है अना ... >> एक बेवा की आस लगती है ज़िंदगी क्यों उदास लगती है हर तरफ़ छाई घोर तारीकी रौशनी की असास लगती है पी रहा हूँ हनूज़ अश्क-ए-ग़म बहर-ए-ग़म को भी प्यास लगती है लाख पहनाओ दोस्ती की क़बा दुश्मनी बे-लिबास लगती है मौत के सामने हयात 'असद' सूरत-ए-इल्तिमास लगती है Share on: