इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी शम-ए-जाँ बुझने लगी है रौशनी ऐ रौशनी क्या कोई भटका हुआ जुगनू इधर भी आएगा रात गहरी हो चली है रौशनी ऐ रौशनी आसमानों पर सितारे हैं न सीनों में शरार ये क़यामत की घड़ी है रौशनी ऐ रौशनी ख़त्म कब होगा ये एहसास-ए-ज़ियाँ का रत-जगा एक इक लम्हा सदी है रौशनी ऐ रौशनी हम अंधेरों के हवारी बन के ज़िंदा हैं मगर ज़िंदगी शर्मिंदगी है रौशनी ऐ रौशनी अपनी क़िस्मत में है नोक-ए-ख़ार या शाख़-ए-बहार फूल हैं या फुलझड़ी है रौशनी ऐ रौशनी