जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं ऐ पैकर-ए-ग़ज़ल तिरे बीमार कौन हैं ख़ुश्बू की साअ'तों के तलबगार कौन हैं इस ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-बू के गिरफ़्तार कौन हैं कब तक छुपे रहेंगे अज़ल ख़ामुशी के भेद शहर-ए-सदा के महरम-ए-असरार कौन हैं किरनों की रहगुज़ार पे उड़ती है धूल सी जो उस तरफ़ गए हैं वो जी-दार कौन हैं सीनों में ले के वलवला-ए-ज़िंदगी की आग अस्र-ए-रवाँ से बर-सर-ए-पैकार कौन हैं सदियों से मुंतज़िर हैं सुलगती मसाफ़तें आसाइश-ए-जुनूँ के तलबगार कौन हैं सरमस्त कर गई जिन्हें अपने लहू की लय वो अर्सा-ए-नबर्द के फ़नकार कौन हैं में तो ग़रीब-ए-शहर-ए-सुख़न हूँ मगर 'जलील' फ़रमाँ-रवा-ए-किश्वर-ए-इज़हार कौन हैं