एक दफ़ा जो तिरे ज़ेर-ए-असर अंधा हुआ अगली दफ़ा भी वही होगा अगर अंधा हुआ मेरे अंदर रौशनी थी ख़ून तो था ही नहीं वार करने वाला पहले वार पर अंधा हुआ वो नज़र आता है तो फिर कुछ नज़र आता नहीं उस को जिस जिस ने भी देखा उम्र भर अंधा हुआ सब उसी को देख कर आए हैं राह-ए-इश्क़ पर जिस का आग़ाज़-ए-सफ़र में हम-सफ़र अंधा हुआ आँखें खुल जाती हैं जिस हालत में ख़ुद को देख कर मैं उसी हालत में उस को देख कर अंधा हुआ उस को आँखें मिल गईं घर में हमेशा की तरह मैं हमेशा की तरह औरों के घर अंधा हुआ उस ने इक अंधे को तोहफ़े में छड़ी क्या भेज दी देखते ही देखते सारा नगर अंधा हुआ मेरे अंधे-पन का औरों ने उठाया फ़ाएदा वो जिधर होता नहीं था मैं उधर अंधा हुआ ऐसे अंधे की हुकूमत है हमारे मुल्क में जिस को ये भी कह नहीं सकते किधर अंधा हुआ