इक दाग़-ए-तमन्ना है तो इक ज़ख़्म-ए-वफ़ा है तन्हा सा ये दिल कितने शरारों में घिरा है आता है नज़र तुम को जो हाला सा सर-ए-बाम कुछ और नहीं मेरी उमीदों का दिया है ये बात नहीं सिर्फ़ कि चेहरे ही नए हैं इस शहर के लोगों का हर अंदाज़ नया है जो ख़ार गराँ-माया मिले राह-ए-वफ़ा में बढ़ कर उन्हें इख़्लास की पलकों से चुना है फिर पड़ने लगी है दर-ए-एहसास पे दस्तक देखूँ तो सही कौन है क्यों चीख़ रहा है किस मोड़ पे ले आई है ऐ गर्दिश-ए-अय्याम हर सम्त लपकते हुए शो'लों की हवा है तुम अंजुम-ओ-महताब पे पहुँचे तो हुआ क्या जब दिल के शबिस्ताँ में अंधेरा ही रहा है मुमकिन हो तो रौशन रखो एहसास की क़िंदील कब चाँद सितारों ने भला साथ दिया है कुछ लोग तो गिर कर भी सँभल जाते हैं 'अतहर' याँ एक ही ठोकर पे जिगर काँप उठा है