एक दरिया रवाँ नहीं मिलता वर्ना साहिल कहाँ नहीं मिलता सहन है या फ़क़त दरीचा है अब मुकम्मल मकाँ नहीं मिलता बारिशें कितनी तेज़ लगती हैं जब कहीं साएबाँ नहीं मिलता रौशनी बे-सहर भी होती है हर शरर को धुआँ नहीं मिलता सिर्फ़ ग़म की ज़मीन होती है हिज्र में आसमाँ नहीं मिलता ऐ ख़ुदा तुझ से हट के क्या सोचूँ दर कोई दरमियाँ नहीं मिलता