एक दिन मुद्दतों में आए हो आह तिस पर भी मुँह छुपाए हो आप को आप में नहीं पाता जी में याँ तक मिरे समाए हो क्या कहूँ तुम को ऐ दिल ओ दीदा जो जो कुछ सर पे मेरे लाए हो दीद बस कर लिया इस आलम का फिर चलो वाँ जहाँ से आए हो क्यूँकि तश्बीह उस से दे 'बेदार' मह से तुम हुस्न में सिवाए हो