एक दिन वस्ल से अपने मुझे तुम शाद करो फिर मिरी जान जो कुछ चाहो सो बे-दाद करो गर किसी ग़ैर को फ़रमाओगे तब जानोगे वे हमीं हैं कि बजा लावें जो इरशाद करो अब तो वीराँ किए जाते हो तरब-ख़ाना-ए-दिल आह क्या जाने कब आ फिर इसे आबाद करो याद में उस क़द ओ रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँ जा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो ले के दिल चाहो कि फिर देवे वो दिलबर मालूम कैसे ही नाला करो कैसी ही फ़रियाद करो सुर्मा-ए-दीदा-ए-उश्शाक़ है ये ऐ ख़ूबाँ अपने कूचे से मिरी ख़ाक न बर्बाद करो देख कर ताइर-ए-दिल आप को भूला पर्वाज़ ख़्वाह पाबंद करो ख़्वाह उसे आज़ाद करो आप की चाह से चाहें हैं मुझे सब वर्ना कौन फिर याद करे तुम न अगर याद करो शम्-ए-अफ़रोख़्ता जब बज़्म में देखो यारो हाल-ए-'बेदार'-ए-जिगर-सोख़्ता वाँ याद करो