एक दीवाने को आज आए हैं समझाने कई पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई अक़्ल बढ़ कर बन गई थी दर्द-ए-सर जाते कहाँ आ गए दीवानगी की हद में फ़रज़ाने कई सारी दुनिया आ रही है देखने के वास्ते सर-फिरों ने एक कर डाले हैं वीराने कई क्या हमारे दौर के कुछ पीने वाले उठ गए आज ख़ाली क्यों नज़र आते हैं पैमाने कई मुझ को चुप रहना पड़ा सिर्फ़ आप का मुँह देख कर वर्ना महफ़िल में थे मेरे जाने पहचाने कई किस तरह वो दिन भुलाऊँ जिस बुरे दिन का शरीक एक भी अपना नहीं था और बेगाने कई मैं वो काशी का मुसलमाँ हूँ कि जिस को ऐ 'नज़ीर' अपने घेरे में लिए रहते हैं बुत-ख़ाने कई