इक दिया ऐसा बुझा है मुझ में नौहागर! अब के हवा है मुझ में अक्स-दर-अक्स बिखरना है मुझे जाने क्या टूट गया है मुझ में न कोई ख़्वाब, न आँसू न ख़याल क्या अजब क़हत पड़ा है मुझ में चश्म हैराँ है, सर-ए-आईना रूनुमा कौन हुआ है मुझ में दिल सुलगने का सबब हिज्र, न वस्ल मसअला इस से सिवा है मुझ में मुन्कशिफ़! आज तलक हो न सका मैं ख़ला हूँ कि ख़ला है मुझ में