बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे यहीं से पर ले के महव-ए-परवाज़ हम हुए थे सुख़न का आग़ाज़ पहले बोसे की ताज़गी था अज़ल-रुबा साअ'तों के हमराज़ हम हुए थे यहाँ जो इक गूँज दाएरे सी बना रही है इसी ख़मोशी में संग-ए-आवाज़ हम हुए थे रवाँ-दवाँ इंकिशाफ़-दर-इंकिशाफ़ थे हम जो मुड़ के देखा तो सेग़ा-ए-राज़ हम हुए थे उफ़ुक़ था रौशन न मुर्तइश पानियों पे किरनें ग़लत जज़ीरों पे लंगर-अंदाज़ हम हुए थे कुरेदते फिर रहे हैं अब रेत साहिलों की वही जो ग़ोता-ज़न-ए-यम-राज़ हम हुए थे जुमूद का एक दौर गुज़रा था फ़िक्र-ओ-फ़न पर तवील अर्से के बा'द फिर 'साज़' हम हुए थे