इक दो अपने यार हुए By Ghazal << गुनाह क्या है मिरा पहले इ... दिलकश हैं ये कितने पत्थर >> इक दो अपने यार हुए बाक़ी सब अग़्यार हुए अब तो ज़माना बीत गया महलों को बाज़ार हुए लफ़्ज़ों के कुछ तीर चले और लहजे तलवार हुए कितने सावन बीत गए गोरी का दीदार हुए पानी से था ख़ौफ़ जिन्हें कैसे दरिया पार हुए Share on: