दिलकश हैं ये कितने पत्थर बे-जाँ लेकिन सारे पत्थर कितनी बेहिस बस्ती है ये इंसाँ भी हैं जैसे पत्थर पूछो उन पर क्या गुज़री है सब कुछ सच बोलेंगे पत्थर इन में भी कुछ दिल रखते हैं पत्थर कब हैं सारे पत्थर जिस रस्ते से गुज़रे हो तुम महके उस रस्ते के पत्थर हम ने देखे हैं उल्फ़त में हँसने रोने वाले पत्थर 'साहिल' कोई तो ये समझे हैं नाज़ुक शीशों से पत्थर