इक दोस्त बेवफ़ा जो हुआ तो पता चला वो साथ चलते चलते रुका तो पता चला रस्ते के बीचों-बीच पड़ा था मैं खा के ग़श लोगों के मुँह से जब ये सुना तो पता चला या ख़ुश था या उदास था हमराह मेरे वो मैं उस के दरमियाँ से हटा तो पता चला करता था तज़्किरा वो मिरे आँसूओं पे रोज़ रंज-ओ-अलम से पाला पड़ा तो पता चला अनमोल किस क़दर था किसी को ख़बर न थी दुनिया से जब चला वो गया तो पता चला आसान आशिक़ी है समझते थे सब यही सच क्या है मैं ने जब ये लिखा तो पता चला बस्ती में जिस ने आग लगाई थी दोस्तो अब उस का ही मकान जला तो पता चला वाक़िफ़ नहीं था अपनी तबीअ'त से 'अर्सलान' कुछ रोज़ मेरे साथ रहा तो पता चला