एक इक पता हवाओं से है लड़ने वाला पेड़ उस का नहीं आँधी से उखड़ने वाला राह चलते हुए उँगली भी किसी की न पकड़ भीड़ में होता है हर शख़्स बिछड़ने वाला इक हुमकते हुए बच्चे की तरह ज़िद न कर ख़ुशनुमा जिस्म खिलौना है बिगड़ने वाला ख़त्म महलों की रवा-दारी का दस्तूर हुआ अब यहाँ कौन है दीवार में गढ़ने वाला ज़िंदगी शहर बसाने में है मसरूफ़ 'आजिज़' गाँव तूफ़ान की ज़द में है उजड़ने वाला