इक फ़स्ल-ए-दर्द आठ पहर चुन रहा हूँ मैं जो कट रहे हैं राह में सर चुन रहा हूँ मैं परवाज़ के बग़ैर तो जीना मुहाल है सय्याद ने जो काटे हैं पर चुन रहा हूँ मैं साथी थे कैसे कैसे मिरे जो बिछड़ गए पलकों से उन की गर्द-ए-सफ़र चुन रहा हूँ मैं ताईद के लिए मुझे अंजुम की है तलाश इक अंजुमन के शम्स-ओ-क़मर चुन रहा हूँ मैं कट भी चुका वो कब का जो था मुद्दई-ए-फ़न अब पुर्ज़ा-हा-ए-दस्त-ए-हुनर चुन रहा हूँ मैं क्या दिल-ख़राश काम हुआ है मिरे सिपुर्द इक ज़र्द-रुत के बर्ग-ओ-समर चुन रहा हूँ में