एक ग़म है उसे अपना जानें हम किसी और को क्या पहचानें मुझ को बर्बाद कर आबाद भी कर झूट इस तरह से कह सच जानें ख़्वाब देखें नए सर से तेरे फिर तिरे ध्यान की चादर तानें दिल के बाज़ार का नक़्शा था अजीब चाँद निकला तो खुलीं दुकानें छेड़ते हैं उसे ख़ुद ही 'मुसहफ़' उस की बातों का बुरा भी मानें