एक गर्दान शब-ओ-रोज़ वो गर्दानते हैं क्या हक़ीक़त है पस-ए-पर्दा नहीं जानते हैं ज़िंदगी हम तिरे धोके में नहीं आएँगे ज़िंदगी हम तिरे बहरूप को पहचानते हैं कोई दिन और कि चमकेंगे सितारा बन कर ख़ाक अल्फ़ाज़ के सहरा की अभी छानते हैं फिर हवा चाहे जहाँ उन को उड़ा ले जाए बे-ख़बर रुख़ जो हवा का नहीं पहचानते हैं ऊँची दस्तार से धोके में न आ जाएँ आप ये फ़क़ीहान-ए-हरम हैं इन्हें हम जानते हैं बारहा उन से कहा था न तमाशा कीजे हुज्जती लोग मगर बात कहाँ मानते हैं