एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर By Ghazal << इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार क... दश्त की वीरानियों में ख़े... >> एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर ख़ामुशी फैला रखी है आज मैं ने ख़ाक पर अब मिरा सारा हुनर मिट्टी में मिल जाने है हाथ उस ने रख दिए हैं दीदा-ए-नमनाक पर रोज़ बढ़ती ही चली जाती है बीनाई मिरी रोज़ रख देता हूँ आँखों को तेरी पोशाक पर Share on: