इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है दश्त में भी दर-ओ-दीवार की बीमारी है एक ही मौत भला किसे करे उस का इलाज ज़िंदगानी है कि सौ बार की बीमारी है बस इसी वज्ह से क़ाएम है मिरी सेहत-ए-इश्क़ ये जो मुझ को तेरे दीदार की बीमारी है लोग इक़रार कराने पे तुले हैं कि मुझे अपने ही आप से इंकार की बीमारी है ये जो ज़ख़्मों की तरह लफ़्ज़ महक उठते हैं सिर्फ़ इक सूरत-ए-इज़हार की बीमारी है घर में रखता हूँ अगर शोर मचाती है बहुत मेरी तन्हाई को बाज़ार की बीमारी है