एक हंगामा शब-ओ-रोज़ बपा रहता है ख़ाना-ए-दिल में निहाँ जैसे ख़ुदा रहता है मेरे अंदर ही कोई जंग छड़ी है शायद मेरे अंदर ही कोई दश्त-ए-बला रहता है जब भी नज़दीक से महसूस किया है ख़ुद को मैं ने देखा है कोई मुझ से ख़फ़ा रहता है हम तो आबाद जज़ीरों से गुज़र जाते हैं और फिर दूर तलक एक ख़ला रहता है ख़ामुशी का पस-ए-दीवार-ए-जुनूँ है साया इस तरफ़ सिलसिला-ए-आह-ओ-बुका रहता है