किस ने देखी है बहारों में ख़िज़ाँ मेरे सिवा कौन कर सकता है ये क़िस्सा बयाँ मेरे सिवा किस को मालूम है सहरा की हवाओं का मिज़ाज रेत पर कौन बनाएगा मकाँ मेरे सिवा सब फ़क़ीरान-ए-शब-ए-हिज्र वतन छोड़ गए कौन अब देगा बयाबाँ में अज़ाँ मेरे सिवा थपकियाँ कौन सर-ए-दश्त मुझे देता है क्या कोई और भी रहता है यहाँ मेरे सिवा एक इक ज़ख़्म मिरे अश्क से ये कहते रहे अब कोई और न हो नक़्श-अयाँ मेरे सिवा इस नए शहर की इस भीड़ में ऐ हज़रत-ए-इश्क़ जानता कौन है अब तुम को मियाँ मेरे सिवा