एक ही जैसे लगे सुनने में अफ़्साने कई हो भी सकता है कि इस दुनिया में हों हम से कई चार आँखें चाहिएँ उस की हिफ़ाज़त के लिए आने-जाने के लिए जिस घर में हों रस्ते कई ख़ुद-इरादी और आज़ादी की बरकत देखिए घर के आँगन में नज़र आते हैं अब चूल्हे कई दिल न हों जब साफ़ तो मिल बैठने का फ़ाएदा हो चुके हैं यूँ तो माज़ी में भी समझौते कई आदमी के पर लगे हैं जब से सिमटी है ज़मीं देस जैसे भेस को दरकार हैं चोले कई ठन गई है इस लिए तक़दीर और तदबीर में हाथ तो हर इक के दो हैं और गुल-दस्ते कई बात क़िस्मत की नहीं दिल था हवस-ना-आश्ना वर्ना हम को भी मिले थे काम के बंदे कई क़ुर्बतों से फ़ासलों को हिस की बेदारी मिली जिस्म-ओ-जाँ के दरमियाँ आए नज़र पर्दे कई भीड़ में ऐसे घिरे कि बढ़ गईं तन्हाइयाँ साथ ही लेकिन हुए आबाद वीराने कई लब पे हल्की सी हँसी और क़ल्ब डाँवा-डोल है राह में का'बे के पड़ते हैं सनम-ख़ाने कई