गुज़र चुकी है जो शब इज़्तिराब कैसा है उफ़ुक़ पे होश-रुबा इल्तिहाब कैसा है वजूदियत का ये रंगीं सराब कैसा है हर एक चेहरे पे मुबहम नक़ाब कैसा है रहेंगे मरहले ता'ज़ीर के जो मर कर भी ये ज़िंदगी का मुसलसल अज़ाब कैसा है ख़ुदा ही जाने कि दिन में तवील रात के बाद हैं शब-गज़ीदा जो सब एहतिसाब कैसा है वो हाल पूछने आए तो मैं ख़मोश रहा सवाल ख़ूब था लेकिन जवाब कैसा है किताब लाख पुरानी सही मगर इस पर छपा है अब जो नया इंतिसाब कैसा है है मा'रिफ़त का सफ़र आगही से हैरत तक मुराजअ'त का जो हो इर्तिकाब कैसा है विता-ए-काहकशाँ पर ज़मीं के बारे में जो भीगी आँखों ने देखा वो ख़्वाब कैसा है मैं जानता हूँ मगर तू भी आइना ले कर मुझे बता कि मिरा इंतिख़ाब कैसा है