एक ही वक़्त में बीमार भी हैं ठीक भी हैं ये जो हम दूर भी हैं आप के नज़दीक भी हैं हुस्न चेहरे से छलकता है सियाही दिल से हाए ये लोग जो रौशन भी हैं तारीक भी हैं पंखुड़ी देखते ही 'मीर' को देता हूँ दाद होंट रंगीं भी हैं नाज़ुक भी हैं बारीक भी हैं शाने से शाना मिलाऊँ कि बचाऊँ पहलू दोस्त ए'ज़ाज़ भी हैं बाइस-ए-तज़हीक भी हैं इन फ़ज़ाओं में सभी रंग हमीं से हैं कि हम अहल-ए-ईमान भी हैं साहिब-ए-तश्कीक भी हैं कुछ समझ में नहीं आता कि मिरे शहर के लोग वजह-ए-तज़हीक भी हैं लाएक़-ए-तबरीक भी हैं