इक जल्वा-ए-नाज़ पर मिटा हूँ मैं दीदा-ए-हैरत आश्ना हूँ यकताई तिरी मिटा रही है गोया कि मैं नक़्श-ए-मा-सिवा हूँ जल्वे हैं ख़ुदी के याँ नज़र में ये आइना मैं भी देखता हूँ मयख़ाने में तर्क-ए-मय का है ध्यान ऐ शैख़ मैं रिंद-ए-पारसा हूँ क्यों मुझ को मिटा रही है ऐ यास क्या मैं कोई नक़्श-ए-मुद्दआ हूँ हस्ती ने जुदा किया है तुझ से हूँ नक़्श-ए-क़दम कि रह गया हूँ ख़ुर्शीद निहाँ है गर ज़िया में मैं जल्वा-ए-यार में छुपा हूँ