इक जुर्म-ए-मोहब्बत की क्या और सज़ा होगी तन्हाई के ग़म होंगे मरने की दुआ होगी जब हुस्न के हाथों से तकमील-ए-वफ़ा होगी वो सुब्ह भी क्या होगी वो शाम भी क्या होगी जाए तो कहाँ जाए अब छोड़ के रुस्वाई इस की भी गुज़र कैसे अब मेरे सिवा होगी इक जश्न-ए-मसर्रत में कुछ डूबती आवाज़ें टूटे हुए शीशों की पुर-दर्द सदा होगी हर अक्स गिरफ़्तार-ए-आईना है ऐ 'अफ़सर' परछाईं भी इंसाँ की आईना-नुमा होगी