कहाँ मैं ज़र के समुंदर तलाश करता हूँ ख़ुलूस-ओ-प्यार के पैकर तलाश करता हूँ तलाश करता नहीं दूसरों के ऐब कभी ख़ुद अपनी ज़ात के अंदर तलाश करता हूँ मैं दुश्मनी भी किसी से करूँ तो कैसे करूँ हरीफ़ क़द के बराबर तलाश करता हूँ जलाए प्यार के दीपक बुझाए नफ़रत के मैं उन हवाओं का लश्कर तलाश करता हूँ हथेलियों की लकीरों पे क्या यक़ीन करूँ मैं हौसलों से मुक़द्दर तलाश करता हूँ नफ़स-नफ़स में तू ही तो 'नसीम' साँसों में मैं तुझ को जिस्म के बाहर तलाश करता हूँ