इक ख़ुदी बे-ख़ुदी के अंदर है राज़ ख़ुद राज़ ही के अंदर है इक क़यामत कोई क़यामत सी ज़ेर-ए-लब ख़ामुशी के अंदर है एक इक क़तरा गिर्या-ए-शबनम फूल जैसी हँसी के अंदर है हँस पड़े हम तो रो पड़ीं आँखें ग़म भी शायद ख़ुशी के अंदर है दिन ढलेगा तो रात आएगी तीरगी रौशनी के अंदर है हुस्न-आराइयाँ बजा लेकिन दिलकशी सादगी के अंदर है ना'रा-ए-इंक़लाब ऐ 'अनवर' आज भी शाइरी के अंदर है