इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा उस का क़लक़ है ऐसा कि मैं सो नहीं रहा वो हो रहा है जो मैं नहीं चाहता कि हो और जो मैं चाहता हूँ वही हो नहीं रहा नम दीदा हूँ, कि तेरी ख़ुशी पर हूँ ख़ुश बहुत चल छोड़, तुझ से कह जो दिया, रो नहीं रहा ये ज़ख़्म जिस को वक़्त का मरहम भी कुछ नहीं ये दाग़, सैल-ए-गिर्या जिसे धो नहीं रहा अब भी है रंज, रंज भी ख़ासा शदीद है वो दिल को चीरता हुआ ग़म गो नहीं रहा आबाद मुझ में तेरे सिवा और कौन है? तुझ से बिछड़ रहा हूँ तुझे खो नहीं रहा क्या बे-हिसी का दौर है लोगो कि अब ख़याल अपने सिवा किसी का किसी को नहीं रहा