एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती दिल के बुझने से दुनिया तारीक नहीं होती जैसे अपने हाथ उठा कर घटा को छू लूँगा लगता है ये ज़ुल्फ़ मगर नज़दीक नहीं होती तेरा बदन तलवार सही किस को है जान अज़ीज़ अब ऐसी भी धार उस की बारीक नहीं होती शेर तो मुझ से तेरी आँखें कहला लेती हैं चुप रहता हूँ मैं जब तक तहरीक नहीं होती दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन सच पूछो तो 'ज़ेब' तबीअ'त ठीक नहीं होती