तुम्हारे बा'द तुम्ही तुम रहे हो आँखों में तुम्हारी तो मिरे ख़्वाबों तलक रसाई रही सब आस-पास थे लेकिन नज़र नहीं आए तअ'ल्लुक़ात पे इतनी समोग छाई रही तिरी ख़ुदाई को हम देख ही नहीं पाए कि हम पे तो तिरे बंदों ही की ख़ुदाई रही सफ़र कटे कि नहीं नक़्श-ए-पा रहे लेकिन ख़याल-ओ-ख़्वाब रहे रंगत-ए-हिनाई रही ये कैसा ख़्वाब था 'ज़ीशान' ज़िंदगी अपनी ये कैसी धुन मिरे चारों तरफ़ समाई रही