इक लम्हा जो फ़ुर्क़त के सिवा और भी कुछ था इक ग़म जो क़यामत के सिवा और भी कुछ था इक चेहरा निगाहों के लिए फ़ैज़-रसाँ था इक ख़्वाब ज़ियारत के सिवा और भी कुछ था इक नक़्श तसव्वुर के परे भी था मुजस्सम इक वहम हक़ीक़त के सिवा और भी कुछ था इक दाग़ जो रखता था मिरे सीने को रौशन इक नाम जो तोहमत के सिवा और भी कुछ था इक सौत-ए-महज़ रौनक़-ए-वीरानी-ए-दिल थी इक गुल दम-ए-वहशत के सिवा और भी कुछ था इक याद ख़यालों के अलावा भी थी मौजूद इक ज़ख़्म अज़िय्यत के सिवा और भी कुछ था ये दौर क़यामत का जिसे हम ने गुज़ारा इक उम्र की मोहलत के सिवा और भी कुछ था