सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या इक इशारा-ए-फ़र्दा एक जुम्बिश-ए-लब क्या देख दिखाता है वा'दा-ए-तज़ब्ज़ब क्या चुल्लू-भर में मतवाली दो ही घूँट में ख़ाली ये भरी जवानी क्या जज़्बा-ए-लबालब क्या हाँ दुआएँ लेता जा गालियाँ भी देता जा ताज़गी तो कुछ पहुँचे चाहता रहूँ लब क्या शामत आ गई आख़िर कह गया ख़ुदा-लगती रास्ती का फल पाता बंदा-ए-मुक़र्रब क्या उल्टी-सीधी सुनता रह अपनी कह तो उल्टी कह सादा है तू क्या जाने भाँपने का है ढब क्या सब जिहाद हैं दिल के सब फ़साद हैं दिल के बे-दिलों का मतलब क्या और तर्क-ए-मतलब क्या हो रहेगा सज्दा भी जब किसी की याद आई याद जाने कब आए ज़िंदा-दारी-ए-शब क्या आँधियाँ रुकें क्यूँ कर ज़लज़ले थमीं क्यूँ कर कार-गाह-ए-फ़ितरत में पासबानी-ए-रब क्या कार-ए-मर्ग कै दिन का थोड़ी देर का झगड़ा देखना है ये नादाँ जीने का है कर्तब क्या पड़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले मूज़ियों के मूज़ी को फ़िक्र-ए-नीश-ए-अक़रब क्या मीरज़ा 'यगाना' वाह ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद इक बला-ए-बे-दरमाँ क्या थे तुम और अब क्या