एक लम्हे को ताज़ा हवा जो चली उम्र भर की घुटन का ख़याल आ गया लाख मुश्किल सही ज़ब्त करना मगर अब तो ख़ासा हमें ये कमाल आ गया जितनी कलियाँ खिलीं जितने तारे खिले उस की आमद के सब इस्तिआ'रे खिले जब तसव्वुर के दामन में कुछ न बचा मेरे पहलू में वो बे-मिसाल आ गया बात-बे-बात कज-बहसियाँ भी गईं वो पुरानी शकर-रंजियाँ भी गईं अब नई शाख़ फूटी है दिल में मिरे ग़म का ताज़ा-ब-ताज़ा निहाल आ गया हाल-ओ-माज़ी मिरा एक जैसा रहा अगले मौसम के ख़्वाबों का क्या फ़ाएदा उस को फ़ुर्सत जवाबों की थी ही नहीं मेरे लब पे ये कैसे सवाल आ गया हम ने सोचा था उस से न शिकवा करें जो गुज़रती है दिल पे वो ख़ुद ही सहें बात जब भी बदलती रुतों की हुई अपने लहजे में गोया मलाल आ गया इक तिनके का मुझ को सहारा मिले मेरी वहशत को अब इक किनारा मिले डूबते डूबते साँस ले लूँ ज़रा ज़िंदगी का भी आख़िर ख़याल आ गया चाँद था वो उफ़ुक़ पर चमकता रहा और सूरज बना तो सरों पे रहा कैसे क़ुर्बत पे वो आज माइल हुआ शायद उस का भी वक़्त-ए-ज़वाल आ गया जान पहचान का सिलसिला भी गया दिल का ताऊस भी रक़्स-फ़रमा हुआ वो जो हैरत-ज़दा बुत बना था खड़ा अब तो उस को भी गोया धमाल आ गया