इस सूरत-ए-हालात में भी सब्र करो हो तुम 'सादिया' बीबी न जियो हो न मरो हो सर अपना किसी संग से टकराती हो पहले फिर बा'द में पत्थर वही सीने पे धरो हो माँगी थीं दुआएँ किसी नादीदा उफ़ुक़ की अब रौश्नी-ए-तब्अ' की वुसअ'त से डरो हो महफ़िल में हो तन्हाई की चादर को सँभाले तन्हाई के आलम में किसे याद करो हो वो शख़्स वही है मगर अतवार नए हैं मोहतात सी इक राय का इज़हार करो हो क्या तुम ने हदफ़ ढूँड लिया ज़ोर-ए-बयाँ का क्या अपने किए पर कभी तन्क़ीद करो हो जब हौसला हिम्मत है तो क्या ख़ौफ़ किसी का ये दर्द तो मीरास है क्या इस से डरो हो हर एक सहेली की जो आँखों में नमी है क्या अपने दुपट्टे में उसे जज़्ब करो हो अब 'सादिया' उस की कोई तावील तो होगी झुलसी हो कहीं धूप में यूँ अब्र करो हो