एक मुद्दत से बहुत चीख़ रहा है मुझ में दर्द-ए-फ़ुर्क़त का कोई मारा हुआ है मुझ में कैसे कह दूँ कि नहीं ख़ाना-ए-दिल में कोई रोज़-ए-अव्वल से मकीं मेरा ख़ुदा है मुझ में कोई पुर-शोर बयाबाँ की सदा है मुझ में मैं तअल्लुक़ को निभाने का हुनर जानता हूँ फिर भी रूठा हुआ हमराज़ मिरा है मुझ में कैसे मैं हाल-ए-दिल-ए-ज़ार बताऊँ सब को इक अजब तरह का तूफ़ान बपा है मुझ में