वो हम होंगे सितम-गारों से जो टकराने आएँगे सर-ए-महफ़िल मोहब्बत का सबक़ दोहराने आएँगे वो मय जिस को समझने के लिए पीना पड़े हम को हमें उस की हक़ीक़त शैख़ क्या समझाने आएँगे उन्हें लब तक न लाने की क़सम तुम ने तो दे दी है ज़बान-ए-ख़ल्क़ पर लेकिन वही अफ़्साने आएँगे सुकूँ किस का लुटेगा कौन ख़ुश होगा सर-ए-महफ़िल नहीं मालूम वो किस पर करम फ़रमाने आएँगे फ़रिश्तों से ख़ता होती नहीं इंसाँ से होती है सुना है इस बहाने शैख़ भी मयख़ाने आएँगे ख़ुद अपनी तंग-ज़र्फ़ी से छलक उट्ठेंगे महफ़िल में ब-वक़्त-ए-मय-कशी ऐसे भी कुछ पैमाने आएँगे शुगून-ए-नेक है मय-ख़ाने का बर्बाद हो जाना नया साक़ी नए शीशे नए पैमाने आएँगे बहार-ए-गुल्सिताँ 'मंज़ूर' जिन राहों से आएगी छिड़कते ख़ूँ प-ए-गुल झूमते दीवाने आएँगे