इक न इक दिन जो कभी मुझ से मोहब्बत होगी देख लेना तुम्हें ख़ुद अपने पे हैरत होगी जाने कब आएँगे वो ज़ख़्म-ए-जिगर पर हँसने जाने किस रोज़ मिरे दर्द में बरकत होगी रश्क-अंगेज़ है फ़िरदौस तिरी आँखों पर इस से बेहतर भी भला क्या कोई जन्नत होगी एक बस तेरी तलब है तुझे पा लूँ जानाँ फिर किसी शय की कहाँ मुझ को ज़रूरत होगी शिकवा-ए-इश्क़ पे इतने भी परेशान हैं क्यों आप अपने हैं तो लाज़िम है शिकायत होगी