इक नई शान से फिर जश्न-ए-बहाराँ होना गुलिस्ताँ तुझ को मुबारक हो बयाबाँ होना फूल के रूप में काँटों ने हमें पाला है हम को आया न कभी ग़म से परेशाँ होना मेरे अशआर ने पिघला दीं किसी की आँखें एक बुत को भी मयस्सर हुआ इंसाँ होना रामपुर ऐ मिरे तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के दयार हो मुबारक तुझे उर्दू का दबिस्ताँ होना हम ने सौंपी है उन्हें अपनी हिफ़ाज़त ऐ 'होश' जिन को आया नहीं ख़ुद अपनी निगहबाँ होना