इक रंज-ए-उम्र दे के चला है किधर मुझे गलियों में रोल दें न मिरे बाल-ओ-पर मुझे दिल पर्बतों के पार न चल दे हवा के साथ बादल बना न दे मिरी ख़ू-ए-सफ़र मुझे मैं ने जिन्हें छुआ उन्हें शहकार कर दिया ऐ काश छू सके मिरा दस्त-ए-हुनर मुझे तुम से बिछड़ के उम्र भर इक सोच ही रही क्या हो तुम एक रोज़ भुला दो अगर मुझे बे-बर्ग-ओ-बार कर गई आँधी मिरा बदन ख़ुश था ये सोच कर कि लगे हैं समर मुझे ऐ दश्त-दार देख चमन-ज़ार की तरफ़ पग पग पुकारते हैं मिरे हम-सफ़र मुझे आज़ाद कर 'नजीब' गिरफ़्तार-ए-रम्ज़ को रंगों में खोल ऐ मिरे रंग-ए-हुनर मुझे